chote baccho ki kahaniya in hindi जो एक दिल छू लेने वाली कहानी है जो सभी उम्र के पाठकों को सही शिक्षा देने और उसमें अच्छे संस्कार पैदा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा हमारी अन्य कहानी भी एक महत्वपूर्ण संग्रह है ,जो बच्चों को बेहतर परवरिश काफी सहायक है। यह कहानी बच्चों को सपनों के निराले दुनिया में ले जाकर उनका भरपूर मनोरंजन करती है।
यह कहानी रात के वक्त बच्चों को सुलाने के लिए सुनाई जाती है। कहानी सुनते-सुनते बच्चे सो जाते हैं और कहानी का नायक उनके सपनों में जीवित होकर उनको जीवन का जरुरी पाठ में पढ़ाता है। आजकल ऐसी जैसी कहानी ऑनलाइन काफी संख्या में उपलब्ध भी है।
एक छोटे बच्चे की कहानी : chote baccho ki kahaniya in hindi
किसी शहर में किशोर नाम का एक लड़का रहता था। वह कक्षा छः में पढ़ता था। वह शहर के किनारे एक अपार्टमेंट में अपने मम्मी – पापा के साथ रहता था। एक दिन वह स्कूल से वापस आया और अपने अपार्टमेंट के लिफ्ट में उसे उसके स्कूल के दोस्त रमेश मिल गया जो उसके कक्षा में ही पढ़ता था। किशोर ने राकेश से पूछा कि क्या तुम आज स्कूल नहीं गए थे क्या ?
यह सुनकर राकेश ने कहा की मैं आज स्कूल नहीं गया था क्योकि मेरे पापा आज मुझे पिक्चर दिखाने ले गए थे। अरे एक बात और जानते हो आज मुझे पापा ने एक फोन गिफ्ट किया है। उसने अपने जेब से फोन निकाल कर किशोर को दिखाने लगा। किशोर यह देखकर काफी हैरान हो गया कि इसके पिता इसके लिए एक अच्छा सा फोन खरीद कर दिया है।
उसने धीरे से कहा कि मेरे पास तो फोन नाम का कोई चीज भी नहीं है। उसकी यह बात सुनकर राकेश मुस्कुराने लगा, अरे यार तुम किस दुनिया में रह रहे हो ? आजकल बिना फोन के कुछ नहीं हो सकता है। जिसके पास फोन नहीं है उसे लोग बेकार और गरीब समझते हैं। तब तक किशोर का फ्लैट आ चुका था ,वह लिफ्ट से निकला और अपने फ्लैट में चला गया। वह अपने कमरे में पहुंचा और पलंग पर लेट कर कुछ सोचने लगा।
किशोर राधेश्याम और देवंती जी का इकलौता बेटा था। राधेश्याम जी एक प्राइवेट कंपनी में काम किया करते थे। उनकी सैलरी काफी कम थी। किसी तरह से फ्लैटऔर एक गाड़ी जो उन्होंने पिछले साल ले लिया था जिसका कि क़िस्त भरने में महीने का काफी पैसा निकल जाता था, और फिर कुछ खास बचता नहीं था। किसी तरह परिवार का गुजारा हो रहा था। अपार्टमेंट में रहने के कारण स्टेटस के चक्कर में उनका अधिकांश सैलरी का पैसा खर्च हो जाता था। बचत के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं था।
देवंती जी किशोर के कमरे में आई तो देखी कि उसका बेटा पलंग पर पसरा हुआ है। उसे लगा कि शायद उसके बेटे की तबीयत ठीक नहीं है। उसने कहा चलो बेटा खाना निकाल देती हो चलकर खाना खा लो। किशोर ने अपनी मां को कहा आज मुझे भूख बिल्कुल नहीं है। देवंती जी को लगा कि किसी बात पर यह उदास है। वह बोली क्या बात है ?आज तुम्हारे स्कूल में किसी ने कुछ कह दिया है क्या ? टीचर ने कुछ कहा है क्या ?
किशोर उठकर अपने पलंग पर बैठ गया। उसने अपनी मम्मी को कहा ” मम्मी जानती हो ,मेरे कई दोस्तों के पास अच्छे-अच्छे मोबाइल फोन है। आज भी राकेश के पिता ने उसे अच्छा सा मोबाइल फोन दिलाया है। तुम लोग आज तक मुझे कोई फोन नहीं दिला पा रहे हो। ऐसा लगता है कि हम काफी गरीब हैं। देवंती जी को अपने बेटे पर पहले तो काफी गुस्सा आया लेकिन उन्होंने सोचा कि लड़के को डांटना उचित नहीं है।
उसने बात को संभालते हुए कहा बेटा ऐसा नहीं कहा जाता है। तुम्हें पता है कि कितना मुश्किल से यह फ्लैट तुम्हारे पापा ने लिया है। पिछले साल एक गाड़ी भी हमने बैंक से ले ली है। फ्लैट और गाड़ी का किस्त देने के बाद बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल पा रहा है। किशोर उदास होकर बोला बस यही सब तुम लोग बहाने बनाने लगते रहते हो। पापा से कहो कि कोई अच्छी सी कंपनी में नौकरी खोज लें जहां ज्यादा सैलरी मिलती है।
अब तो देवंती जी को गुस्सा आने लगा था। उसने कहा कि , हां तुझे लगता है कि तेरे पापा जानबूझकर छोटी कंपनी में काम कर रहे हैं। क्या जानता नहीं है कि बड़ी कंपनियां हर महीने अपने कर्मचारियों को बाहर निकालती जा रही है। कान खोल कर सुन लो , तुमको अभी कोई मोबाइल फोन नहीं दिया जाएगा। हम तेरी स्कूल और कोचींग की फ़ीस भर रहें हैं , यही कम है क्या ? तुम सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।
यह सब अभी मत सोचा करो। अपनी मम्मी को गुस्सा में देखकर किशोर चुप हो गया। उसे लगा कि अब इसके बाद कुछ बोला तो मम्मी हो सकता है मुझे मारपीट करना शुरू कर दे। इसलिए वह अपना मुंह फेर कर फिर से सोने का नाटक करने लगा। शाम को राधेश्याम जी घर आए तो उनकी पत्नी ने कहा की किशोर मोबाइल फोन के लिए नाराज है। उसके सभी दोस्तों के पास मोबाइल फोन है।
राधेश्याम जी बोले कि फिर वह फोन लेने की जिद करके खाना नहीं खा रहा है ?उससे कहो की जब वह स्कूल खत्म कर लेगा है तब उसे एक फोन मैं दिला दूंगा ,अभी मैं फोन नहीं दिला सकता हूं।
किशोर यह बात सुनकर अपने कमरे से निकल कर ड्राइंग रूम में आ गया। उसने अपने पापा को कहा कि ‘पापा मेरे स्कूल और अपने सोसाइटी में जितने लोग रहते हैं सभी के पास अपना-अपना मोबाइल फोन है। सिर्फ मेरे पास फोन नहीं है, तो मुझे काफी बुरा लगता है। मेरे स्कूल में कुछ लड़कों के पास तो बाइक भी है और मैं तो पैदल ही स्कूल जाता हूँ। राधेश्याम जी ने अपने बेटे को डांट डपट कर चुप करा दिया, तब से किशोर उनसे बहुत कम ही बात किया करता है।
एक दिन राधेश्याम जी सुबह-सुबह उठे तो दखे की किशोर अपने कमरे में नहीं है। राधेश्याम जी उसे इधर-उधर खोजो लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला। बाहर सड़क पर भी उन्होंने उसकी तलाश किया लेकिन किशोर कहीं नहीं मिला। किशोर की मां देवंती जी बैठी रो रही थी। तभी किशोर के कमरे में तकिए के नीचे कागज का टुकड़ा मिला। कागज में लिखा हुआ था ,’पापा -मम्मी मैं यह घर छोड़ कर जा रहा हूं, अब मैं कुछ बड़ा आदमी बनकर ही वापस लाऊंगा।
आप लोगों ने एक-एक चीज के लिए मुझे तरसा दिया है। मैं अब इस गरीबी में नहीं रह सकता। राधेश्याम जी अपना माथा पकड़ कर पलंग पर बैठ गए। इधर किशोर रेलवे स्टेशन जाकर ट्रेन पकड़ कर सीधा मुंबई नगरी पहुंच गया था। उसे यह यहां यकीन था कि यहां वह एक दिन बहुत बड़ा आदमी बन जाएगा। ट्रेन मुंबई स्टेशन पर रुकी। स्टेशन से वह बाहर आया। चारों तरफ काफी भीड़ दिखाई दे रही थी। किशोर एक होटल के सामने खड़ा हुआ। उसे काफी जोरों की भूख लगी थी।
किशोर उस होटल में गया और कुर्सी पर बैठ गया। एक बेटर आकर खाना का आर्डर ले गया। कुछ देर के बाद एक पतला दुबला सा आदमी जिसकी उम्र करीब 40 साल की होगी ,खाना टेबल पर लगाकर चला गया। किशोर खाना खाकर होटल के मैनेजर को पैसा देने गया तो उसने कहा कि यह जो आदमी जो टेबल पर खाना पहुंचा रहा है वह बहुत कमजोर और बूढ़ा सा है। इसे इस काम पर क्यों रखे हो ?उसको देखने के बाद होटल का स्टैंडर्ड खराब हो जाता है।
होटल का मैनेजर ने उसे कहा , ‘बेटा यह आदमी काफी आमिर घर से है लेकिन आज से 15 साल पहले यह किसी बात पर अपने घर वालों से नाराज होकर अपने घर से निकल कर यहाँ आ गया और तब से इस होटल में काम कर रहा है। इसने पहले काफी खोजबीन किया कि कोई अच्छा सा काम मिल जाए पर जब अच्छा सा काम नहीं मिला तो अपना पेट भरने के लिए इस होटल में काम करना शुरू कर दिया।
कुछ सालों के बाद यह अपने घर भी वापस गया था लेकिन तब तक इसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी थी और इसके सारे संपत्ति पर इसके रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने कब्जा कर लिया था उसके बाद यह वापस फिर यहां आ गया और तब से चुपचाप बिना कुछ किसी से कहे यह अपना काम करता रहता है।
शायद यह अब अपनी गलती का प्राश्चित कर रहा है। होटल के मैनेजर की यह बात सुनकर किशोर को बहुत गहरा धक्का लगा। उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। होटल का बिल पेमेंट करने के बाद वह बाहर निकला और टेलीफोन बूथ से अपने पापा को फोन लगाया। उसने अपने पापा को कहा , ‘पापा मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है।
आज के बाद आपसे कभी कुछ नहीं मांगूंगा। मैं कल ही अपने घर वापस आ रहा हूँ। राधेश्याम जी ने उससे पूछा बेटा पहले यह बताओ की तू कहां है ?मैं तुझे लेने आ जाता हूँ। किशोर अब सोच रहा था कि जीवन का जो सीख उसके मम्मी पापा नहीं सीखा पाए वह उसे एक ठोकर लगने पर सब कुछ सीखा गया। यही है chote baccho ki kahaniya in hindi.
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